आज एक ख्वाब आया है
आज एक ख्वाब आया है
सवेरे सवेरे आज एक ख़्वाब आया है तुम्हारा घर देखा मैंने उसमें
पहाड़ों से सटा हुआ वादियों में बसा हुआ
दरवाजे के पास गुलाब की क्यारी और उसी के पास खड़ी हुई तुम
मुझे यूँ देखकर खुश हो रही थी दावत पर बुलाया था
तुमने शायद घर में कोई समारोह था फ़ोन पर इतना ही कहा था तुमने
कि तुम्हें तो आना ही है जब तुम मुझे अपना घर दिखा रही थी
मैं तुम्हारी आँखों में अपना घर बना रहा था
घर के लोगों से मिलवाते वक़्त तुम कुछ शरमा रही थी
और मैं तुम्हें घूरता ही जा रहा था
जाते वक़्त तुमने पीछे से आवाज़ दी
और नींद खुल गयी उसी वक़्त
वो ख्वाब महज़ एक ख़्वाब ही रह गया
सुना है के सुबह के ख़्वाब सच हो जाया करते है
मैं इसी उम्मीद में दुबारा सोने की कोशिश में लगा हूँ
ताकि वो ख़्वाब फिर से आये
जहाँ हम दोनों इक दूजे को ख़ुदा हाफिज भी न कह पाये थे
सवेरे सवेरे आज एक ख़्वाब आया है ।।