इनायत तुम्हारी
इनायत तुम्हारी
मिले तुमसे जितना,
गम झेल बैठे,
तुम्हारा करम हो तो,
कुछ मेल बैठे।
इनायत तुम्हारी रही,
थोड़ी-थोड़ी,
मोहब्बत के जज्बों से,
हम खेल बैठे।
चलो आप थोड़ी,
वफा ही निभा दो,
बढ़ी इस जहाँ की,
जफा ठेल बेठे।
नज़र को नज़र का,
बड़ा आसरा है,
अगर आप चाहो,
भला मेल बेठे।
छुपाते रहे हो,
दरद अपना मासूम,
जमाने के सारे,
सितम झेल बैठे।