हाँ मैं सपनें बुनती हूँ
हाँ मैं सपनें बुनती हूँ
वक़्त बेवक़्त खुद से बात करती हूँ,
आसमान में उड़ते परिंदों को देखकर खुश होती हूँ,
कभी कभी तितली सी उड़ती फिरती हूँ,
हाँ मैं सपने बुनती हूँ।
अनजान मुस्कानों से खुश होती हूँ,
चिल्ला चिल्ला कर हँसती हूँ,
गिला हो तो भी हँस कर मिलती हूं,
हाँ मैं सपने बुनती हूँ।
ठहरकर कभी मनन करती हूँ,
तो कभी हवा सी भागती हूँ,
फिर भी हर पल सीखती हूँ,
हाँ मैं सपने बुनती हूँ।
सपनों को जान मानती हूँ,
पहचान की तमन्ना रखती हूँ,
रोकर भी दुनिया में खुश घूमती हूँ,
हाँ मैं सपने बुनती हूँ।
क्योंकि सपनों ने ही संभाला था,
क्योंकि सपनों ने ही जीना सिखाया था,
अगर सपनों ने रुलाया,
तो सपनों ने ही हँसाया था।
कुछ बड़ा करने का जज़्बा रखती हूँ,
बड़ी मंज़िलों की बड़ी कीमतें चुकाती हूँ,
हर बार गिरकर, खुद ही हँस पड़ती हूँ,
हाँ मैं सपने बुनती हूँ।