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लकड़ी

लकड़ी

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 पहली साँसों से जब जिन्दगी का आगाज़ हुआ

जिस पालने में माँ की लोरियाँ सुनी

वो पालना लकड़ी का था

दिन, महीने, वर्ष जैसे क्षणों में गुजरे

नन्हे पाँव जमीं पर चलने को बेकरार थे

कभी सन्तुलन बनता कभी बिगड़ता रहा

कभी मैं गिरता कभी संभलता रहा

फिर तिपहिया खिलौना मददगार बना

जिसे पकड़ कर मैं चलता तो वो आगे रेंगता

वो मेरा मददगार खिलौना तो था

मगर लकड़ी का था

 

फिर शिक्षा का दौर आया

तख्ती, कलम, दवात लिये

मैं विद्यालय जाता

रोज तख्ती पोंछता, रोज सुखाता

कलम स्याही में डुबोता

और लिखता जाता

जिस कलम से पहली बार लिखा

वो कलम लकड़ी का था

जिस तख्ती पे पहली बार लिखा

वो तख्ती लकड़ी की थी

 

वक्त गुजरा, बचपन गुजरा

जिन्दगी का रुख बदला

वो बच्चा अब किशोर था

नई आशाएं

नई उमंगों का दौर था

नये साथी, नई कक्षा

नई किताबें, नये शिक्षक थे

शिक्षक आते अध्ययन करवाते

कुछ श्यामपट पर लिख जाते

जिस श्यामपट को मैं रोज निहारता

वो श्यामपट लकड़ी का था

शिक्षक की कुर्सी, शिक्षक की मेज

छात्रों के बैंच सब लकड़ी का था

बड़ा मन भाता रविवार था

हर छात्र को इसका इन्तजार था

हँसते खेलते मौज उड़ाते

सभी मिलकर क्रीड़ा क्षेत्र जाते

कुछ विकेट कुछ बल्ले ले आते

हर विकेट, हर बल्ला

मगर लकड़ी का था

 

वक्त गुजरा जिन्दगी बदल गई

बुढ़ापे ने दस्तक दी

जवानी ढल गई

निर्बल जिस्म अब अस्वस्थ था

लाचारी में बूढ़े का बुढ़ापा पस्त था

फिर इक छड़ी ने अपनापन दिखाया

हाथ थाम कर मुझे उठाया

कदम कदम साथ चल के

सच्चा साथ निभाया

वो हमदर्द छड़ी तो थी

मगर लकड़ी की थी

 

फिर ना जाने कब जिन्दगी की डोर टूट गई

रेत की तरह हाथ से

जिन्दगी छूट गई

जीते जी ना जिनका साथ था

हर वो अपना करता विलाप था

चार कंधों ने उठाया

जिस तख्ते पर मैं सवार था

वो तख्ता मगर लकड़ी का था

आगे मैं

पीछे दुनिया का जमघट था

आखिरी मंजिल की और प्रस्थान था

वो मंजिल और नहीं शमशान था

कुछ आँखें नम थी

कुछ के आँसू सूख गये थे

अब आगे का सफर

मुझे तन्हा ही तय करना था

ज्वाला में खाक होने तक जलना था

जाने वाले के साथ 

कौन जाता है

अग्नि में जलना किसे भाता है

लकड़ी ने फिर साथ निभाया

मुझे जलाने से पहले

खुद को जलाया

मेरे साथ जलकर 

वो खाक हुई

मेरी तरह वो भी इतिहास हुई

लोग मुझे भले ही भुला दें

लकड़ी का महत्व ना भूल पायेंगे

लकड़ी की महानता जानकर

हजारों पेड़ लगायेंगे।

 

 


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