Unlock solutions to your love life challenges, from choosing the right partner to navigating deception and loneliness, with the book "Lust Love & Liberation ". Click here to get your copy!
Unlock solutions to your love life challenges, from choosing the right partner to navigating deception and loneliness, with the book "Lust Love & Liberation ". Click here to get your copy!

Pawan [ पवन ] Tiwari [ तिवारी ]

Others

1.0  

Pawan [ पवन ] Tiwari [ तिवारी ]

Others

अब मैं गाँव नहीं हूँ

अब मैं गाँव नहीं हूँ

3 mins
13.6K


अब मैं गाँव नहीं हूँ

अब मुझ में मैं नहीं हूँ।

मुझमें सिर्फ मेरा नाम बचा है। 

आप ने किताबों में जैसा मेरे बारे में पढ़ा,

चित्रों में, फिल्मों में देखा, अपने अध्यापकों से सुना,

कल्पना की, मैं अब वैसा नहीं हूँ।

मेरे नाम पर, मुझसे मिलने मत आइयेगा,

आप को दुःख होगा, आप को लगेगा

मैंने आप को गाँव के नाम पर ठग लिया है। 

पर सच ये है कि मुझे लूटकर

मेरी पहचान को रौंद दिया गया। 

अब  मुझमें मिट्टी की दीवार, नरिया, 

खपरैले, बल्ली और सरकंडे से बने घर नहीं दिखेंगे

उनमें चमगादड़, गौरैये और कबूतरों के घोसलें नहीं मिलेंगे।

मेरी पहचान का सच्चा प्रतीक जुआठे में नधे बैल

और उनके पीछे सिर में अंगोछा बांधे 

और कंधे पर रखे हल लेकर चलने वाला किसान नहीं मिलेगा।

मेरी कुछ और निशानियाँ कोल्हू खींचते बैल,

जाँता पीसती औरतें नहीं दिखेंगी, 

 

मेरी घरेलू सांस्कृतिक पहचान

मसाला पीसने और जीभ की चटोरी दोस्त चटनी की मालकिन

सिल बट्टा, दूध वाली कहतरी

और आम के लकड़ी की मथनी को घरबदर कर दिया गया है।

अब पलटू काका की धनिया को छूने से उँगलियाँ नहीं महकती

बुधई भाई के घर में पकने वाली आलू-गोभी की तरकारी

पूरब के टोले तक नहीं महकती , 

अब निमोने में पहले जैसी मिठास नहीं मिलती,

क्योंकि सब अब देसी गोबर से दूर हो गये हैं। 

आलू, गोभी, मटर, टमाटर, धनिया और तो और

गेहूं और धान भी पक्के नसेड़ी हो गये हैं।

अब सबको डाई, यूरिया और पोटाश चाहिए, 

इनके शरीर में खुशबू की जगह अब ज़हर दौड़ता है,

मेरी बाहरी पहचानों में कासि,

पुआल, गन्ने की सूखी पत्तियों से बनी मड़ई,

कच्ची टेढ़ी-मेढ़ी गलियाँ और खेत के कोने में पड़े गोबर के घूर

अब नहीं दिखते, 

लौटू चाचा के घर के सामने वाले 

पीपल पर  अब गिद्धों के घर,

सिर पर खंचोली रखकर 

तरकारी बेचने वाले रामाधार कोइरी,

बुढ़िया का बार बेंचने वाले लाला

और गेहूं के बदले बर्फ देने वाले फिरतूलाल

अब नहीं दिखते 

अब लकड़ी के तराजू, मिट्टी के बर्तन, 

अनाज रखने को माटी की डेहरी 

दिवाली पर दियली, कोसे और घंटी,

अब पीपल और पाकड़ के पेड़ के नीचे पंचायत नहीं होती, 

अब पंच नहीं पुलिस मामले सुलझाती है।

अब पीपल और पाकड़ के जगह पर

आधुनिक पंचायत घर बन गया है

जहाँ पंचायत के सिवा सब होता है , 

अब यहाँ बियाह नहीं होता

अब कंहरवा, बिदेसिया, नौटंकी नहीं होती

अब मैरिज होता है, आर्केस्ट्रा और डीजे होता है।

अब मैं भी बदसूरत कक्रीट सा हो गया हूँ।

मुझे शहर बनाने के नाम पर,

विकास के नाम पर लूटा गया,

मुझे पिछड़ा, गंवार कहकर दुत्कारा गया, 

शहर बनने के सपने दिखाया गया,

हमारे खेतों को उद्योगों के नाम पर हड़पा गया

विकास के नाम पर मेरे चरित्र

और चेहरे को बिगाड़ा गया

मैं भी उनके बहकावे में आकर

बिना सोंचे समझे दौड़ पड़ा शहर बनने

बिना बिजली, बिना सड़क, बिना उद्योग, बिना तकनीक 

मैं कैसे बनता शहर, मैं शहर बनने के चक्कर में

न गाँव रह सका न शहर बन पाया

बस मेरा नाम गाँव है,

मैं अब गाँव नहीं हूँ,

शहर का पिद्दी सा पिछलग्गू हूँ।


Rate this content
Log in