योग
योग
हाथ जोड़ते हैं सर्वप्रथम अभिवादन में...
भेंट स्वरूप में भी है प्रथम योग ।
जोड़-जोड़ कर समाज है बनता
जुड़-जुड़ कर जमा होते हैं लोग ।
जोड़ना ही सृष्टि है बिखेरना नही
और जोड़ ही कहलाता है योग ।।
हृदय का मिलन हो या भावों का
आपसी प्रेम का हो द्वितीय योग ।
साँसों को प्राणों में समाहित कर
कर एकाग्र चित्त पूर्ण मनोयोग ।
यही तो साधना है जीवन की कि
पहले देह तो रहे स्वयं की निरोग ।।
स्वास्थ्य लाभ शरीर का पोषण
यही हो क्रिया यही हो तृतीय योग ।
हम जुड़ें एक दूसरे से भाईचारा हो
सुख हो दु:ख हो, हो वियोग हो संयोग ।
जीवन में आसन तो बदलते रहेंगे
हर परिस्थिति को तू हँस के भोग
यही नियति, यही प्रकृति यही संजोग है
यहाँ घटाना नही, सम्पूर्ण योग ही योग है ।।