मनुजता
मनुजता
मेरी आवाज
पहुँचे तो
जरा इक बार
सुन लेना |
मेरी करुण
पुकार पर
हे नाथ कृपा
कर देना |
न दाता हूँ
न धर्मी हूँ
मगर इन्सान
का सहकर्मी हूँ |
इस कलयुग
में हे नाथ !
मगर इन्सान
को इन्सान
बना देना |
न नेता हूँ
न सेवक हूँ
न ही उपकारी हूँ
मगर इक लाचार
की लेखनी हूँ
मनुज का
तन देकर
फरियाद करें
"अंजलि"मनुजता
का पाठ पढा़ देना |
मगर इन्सान को
इन्सान बना देना |