बचपन
बचपन
आज फिर वो बचपन याद आया है,
किसी की दुनिया ने हमारी दुनिया को जगाया है।
वो दुनिया जहाँ सिर्फ सपने पलते थे,
आज उन सपनों ने हमे कहाँ लाकर बसाया है।
वो दुनिया जहाँ परछाई भी दोस्त हुआ करती थी,
हर पल में हमदर्द हुआ करती थी।
जिस दुनिया में हम हँसते थे दिल खोल के,
उस दुनिया में हर दिल में दुआएं होती थीं।
वक़्त ये हमें कहाँ बहा ले आया,
कहीं दूर कश्ती के पास उठा लाया।
हम बैठे थे अपनी कागज़ की नैया में,
अपनी उस दुनिया से पार ही ले आया।
हुआ मशहूर जग पर उन्ही किलकारियों से,
उन्हीं मुस्कुराहट से, उन्हीं जज़्बातों से।
जिस दुनिया को हम कहते थे बचपन,
उन्हीं नादानियों से, उन्हीं शरारतों से।
वो दुनिया जो उड़ा ले गयी हमें,
किसी रौशनी की स्याही में,
नदी किनारे बैठी किसी मंज़िल की ख्वाहिश में,
किसी पेड़ की शाखा में, किसी सपनों के आँगन में।
"आज फिर वो बचपन याद आया है...।"