आखिर कब तक
आखिर कब तक
नींद तो बस बहाना होती है
तुझसे मिलने का ख्वाबो में
अपने ख्वाबो की दुनिया सजाने का.....
वैसे तो हम मिल नही सकते पर
ख्वाब हमको रोज मिलवाते है
एक दूजे से फिर हम घंटो बाते करते है...
अपने दर्द हम तुमको तुम हमको बताते हो
एक दूजे के हम आँसू पोंछते है
एक दूजे की खातिर हम खुश होते है....
ये ख्वाबो की खुशियां हमको बहुत प्यारी है
हम दोनों हर पल साथ साथ तो है एक दूजे के
जुदा जुदा तो नही ख्वाबो में
ये नींद के ख्वाब सच कहें तो हमको बहुत प्यारे है ...
ख्वाबो में हमारे तुम आते हो चैन हमारा छीन ले जाते हो
हमको हर पल हँसा कर चुप चाप चले क्यों जाते हो
क्यों तुम जिंदगी बनकर हमारी आ नही जाते हमेशा के लिए......
हम तुम को हर पल याद करते रहते है क्यों
तुम हमको भूल जाते हो
दिल हमारा टूट जाता है तेरी बेरुखियाँ देखकर
आखिर कब तक तुम यूँ ही हमारा इम्तिहान लेते रहोगे...