कसूर
कसूर
महफ़िल में उन्हे छुप के देखने की आदत-सी हो गई थी,
उनसे नज़र मिलाने की बस चाहत सी हो गई थी,
दिल रोता है हर पल, वो जो ना हैं हमारे पास,
रूह जलती है हर लम्हा, जो उनके हाथ किसी और के हाथ!
अब इसमें कसूर किसका है,
ये हम बताएँगे,
इज़हार ना करने की सज़ा,
हर लम्हा पाएँगे!