सामाजिक मुद्दा
सामाजिक मुद्दा
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इंसानियत बेरोज़गार बैठी है
मज़हब का कारोबार चल रहा।
दरिंदगी अपने मकाम पर है
सभ्यता का तिरस्कार चल रहा।
शहीदों पर उँगलियाँ उठ रही हैं
भ्रष्ट नेताओ का सत्कार चल रहा।
नीरव माल्या देश लूट रहे हैं
आम आदमी का शिकार चल रहा।
गरीबी से किसान तड़प रहा है
अमीरी का अखबार चल रहा।
बच्चे सड़़को पर भीख मांग रहे हैं
डिजिटल इंडिया का प्लान चल रहा।
भगवान का अस्तित्व नहीं है
धर्म का बाज़ार चल रहा ।
रूह का कोई इंसान नहीं है
जिस्म का खरीदार चल रहा ।
दिल की कोई सुरत नहीं है
दिखावे का संंसार चल रहा।
अपनत्व खतम हो रहा है
अपनों का बस नाम चल रहा।
जिंंदगी जीना सब भूल गयेे हैं
साँँसो का बस काम चल रहा !