राहें
राहें
ये राहें,
क्या कुछ कहती हैं ?
कहती हैं कि वो कितना सहती हैं।
ये राहें,
हाँ, कुछ तो कहती हैं।
कभी कुछ सुनाई देता है,
कभी मन का वहम लगता है,
क्या राहें सोती हैं या हर वक्त -
जागती रहती हैं ?
हमारे कदम इन्हें चोट नहीं पहुचाते ?
या इन्हें चोट खाने की आदत - सी है ?
शायद हम ही नहीं समझते,
क्या कुछ कहती हैं ये राहें?
मंज़िल है, पर नज़र नहीं आती,
ये राहें ही तो हमें मंज़िल दिखाती हैं ?
क्यों नहीं करते हम इनका शुक्रिया,
क्यों ये अपना दुःख नहीं जताती हैं ?
ये राहें, ज़रूर कुछ तो कहती हैं,
शायद हम ही नहीं समझते,
ये राहें,
सच बहुत कुछ कहती हैं।