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बोल तू माँ ....

बोल तू माँ ....

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मैं रोती थी तो पुचकार कर चुप कराती थी माँ ....
लोरियाँ गा-गाकर हमेशा मुझे सुलाती थी माँ ....

बचपन की शैतानियाँ मेरी झेलती थी माँ ....
समय निकाल कर मेरे संग खेलती थी माँ ....

अपने क़दमों की जन्नत में बिठाती थी माँ ...
अपने आँचल की ठंडी छाँव अोढ़ाती थी माँ ....

खाना ले-लेकर मेरे पीछे -पीछे दौड़ती थी माँ ....
बड़ी मशक्कत से खाना मुझे खिलाती थी माँ ....

मैं भागती तो अकेली नहीं छोड़ती थी माँ ....
गिरूँ न,साया बन पीछे -पीछे डोलती थी माँ ....

नज़र लगे न कभी ,काला टीका लगाती थी माँ ....
खुशियों की फुलझड़ियाँ छुड़ाती थी माँ ....

प्यार करती दुआओं के अंबार लगाती थी माँ ....
सारे कष्ट खुद अकेली झेल जाती थी माँ ....

गाना गा-गाकर मुझको लुभाती थी माँ ....
लुक-छुप तुझे हर पल, मैं छकाती थी माँ ....

महापुरुषों की गाथाएँ सदा ,सुनाती थी माँ ....
संस्कार देती रही अच्छे सदा ,मुझे मेरी माँ ....

आगे बढ़ने का सबक सदा सिखाती थी माँ ....
अनुशासन व एकता का पाठ भी पढ़ाती थी माँ ....

आज खेलूँ मैं किसके संग ज़रा बोल तू माँ ....
क्यों चली गई मुझे अकेली छोड़ तू माँ ....

याद रह-रहकर तेरी है आती मुझे मेरी माँ ....
आँसुओं से तकिए मैं भिगोती हूँ मेरी माँ ....

एक -दूजे का हम तो बढ़िया खिलौना थे माँ ....
कहाँ से लाऊँ अब ऐसा खिलौना, तू बोल मेरी माँ ....

रहा आाशीर्वाद का हाथ सदा मेरे सिर पे माँ ....
तभी जीत पाई मैं ढेरों पुरस्कार मेरी माँ....

सदा याद करती हूँ ,पर तू न आएगी माँ ....
सदा दिल में रहेगी तू समाई प्यारी मेरी माँ ....

कभी माँ का दिल कोई भी दुखाए न माँ ....
ऐसी सबको दुआएँ तू ही दे दे ,दुलारी मेरी माँ ....

कभी भूल पाऊँ न तेरा पल भी साया मेरी माँ ....
उज्ज्वल होती रहेगी इसी से मेरी ,काया मेरी माँ ....

बेटी-रूप में पैदा कर न पछताई तू मेरी माँ ....
समझा मुझे ही बेटा पिता ने भी,दोनों महान मेरी माँ ....

लाड़-प्यार तेरा मन में बसा रहेगा मेरी माँ ....
नमन तेरे चरणों में मेरा बारंबार मेरी माँ ....


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