सरहद का पहरेदार
सरहद का पहरेदार
देश की आबरू बचाने की खातिर सोता नहीं हूँ रात भर,
अपनों से दूर, मैं पहरा देता हूँ वीरान सरहदों पर,
वतन वाले महफूज़ रहे, गश्त लगाता हूँ मैं रात रात भर,
अपनों की तरफ आखें फेर ली मैंने,
और देश को गले लगा लिया, हर पल हर दम !
माँ की आंसू से भीगी चोली, साथ खड़े मेरे हमजोली,
पिता की कंपकपाती टांगे, मुझे रोक रही थी,
वह अनछुई मेरी प्रियतमा,प्यार की एक प्रतिमा,
उसपर घूंघट से उसका निहारना, मुझे रोक रही थी !
वह मेरा ही खून, मुझ जैसे ही दिखने वाले,
अपने आंखों के मोती मुझ पर लुटा रहे थे,
रोते बिलखते कह रहे थे,
"भाई थोड़े दिन तू और रुक जा,
माँ पिता को थोड़ा ढाडस बंधा,
भाभी को थोड़ा विश्वास तो दिला,
कुछ पल साथ हमारे साथ और बिता !"
यह रिश्तों की डोर मुझे रोक रही थी,
पर भारत माता के आँचल पर कोई आंच न आये,
उसकी एक पुकार पर, रिश्तों को एक पोटली में बांध कर !
माँ बाप को रोता छोड़ आया,
भाई बहिन को अनदेखा कर दिया
घूंघट में बैठी उस काया को अकेला छोड़ आया,
देश की मर्यादा को बचाने की खातिर
छोड़ आया वह संसार, हर पल हर दम !
पर यह विडम्भना तो देखो मेरी,
बंदूक थमा के, हाथ बांध दिए मेरे,
सरहदें तो थमा दी, थमा दिए उसूल बेढंगे,
मुझ पर पत्थर फेंकने वालों को !
मासूम करार दिया हकूमत के पहरेदारों ने,
फरमान साथ में सुना दिया,
"आतंकवादी हो या देशद्रोही, मत मारो,
उसकी गतिविधि को थोड़ा अनदेखा कर दो !
ज़रा उसके परिवार का थोड़ा ख्याल करो,
उसके पेट पर लात मत मारो,
ज़मीर से जो मरा है, उसको क्यों मारो,
वह मासूम है, दिमाग से बीमार है !
कुछ लोगों की साज़िशों का शिकार है,
उसको समय दो, तुम मत गबराओ,
एक छुपा हुआ सन्देश भी सुन लो-
"तुझे परिवार की याद सताए या न सताए,
तेरी आँखें खून के आंसों रोये या न रोये,
तू खाये या न खाये, चाहे हफ्ते में एक बार नहाये,
एक सफ़ेद कपड़े की जोड़ी साथ में लटकाये
इंतज़ार कर उस गोली का,
जो कभी भी तेरा सीना या माथा बेद जाये
चाहे इस पार से आये या उस पार से आये !"
मंत्री हो या हो वी आई पी,
उनकी रक्षा की खातिर मैं साथ टिका रहा, हर पल हर दम,
जिन्होंने सांसे दी थीं उन पावन मूर्तियों को पीछे छोड़ आया,
जिनके अंदर खुद को पाया, वह भाई बहिन पीछे छोड़ आया !
जिसके संग सपने संजोये, उस प्रियतम को पीछे छोड़ आया,
वह गलियां, वह चौबारे ,वह साथी संगी , सब पीछे छोड़ आया,
इक सपना साक्षात्कार करने, भारत माता की रक्षा करने,
एक वीर कहलाने की खातिर मैं मरता रहा जीता रहा, हर पल हर दम !
ए देश के ठेकेदारों, मेरी भी इक अर्ज़ी सुन लो,
हम भी दिल रखते हैं, है हमारी भी ख्वाइशें सुन लो,
जिस धरती की खातिर हम मिटने को तैयार है,
उस धरती पर न्याय का क्यों हमें इंतज़ार है ?
हर दिन एक ठंडी काया किसी न किसी आँगन में,
कुछ बोलना चाहती है, सहलाना चाहती है अपनों को,
कितने घूंघट बदल गए सफ़ेद लिबास में,
कितनी मासूम आत्मायें तरसती है बाप के दुलार को !
तुम्हारे घर सौ से हज़ार, हज़ार से लाख करोड़ के हो गए,
और इसी कतार में हम जैसों ने ज़िन्दगी से हाथ धो लिए,
कुछ तो ऐसी हवा चले,
न कोई माँ रोये, न बाप के कंधे झुक जाये !
न मासूम आँखें पथरा जाये,
न किसी का सिंदूर बेमौसम मिट जाये,
देश के लिए मरना मिटना, वह हमारे बस में हो जाये,
न शहीद कहलाएं, पत्थर खाने के बाद !
न दुश्मन की गोली बिना वजह हमें बेध जाये,
हकूमत चलाने वालों के दिल, कुछ तो पिगल जाये,
जो शहीद हुए भी गर हम ,हमारे परिवार न शहीद होये,
इसी नयी आशा के साथ जीता है,सरहद का पहरेदार हर पल हर दम !