मैं अकेला हूँ
मैं अकेला हूँ
कई बार यूँ भी होता है के
आसमां की तरफ़ देखकर
चीखने को जी करता है
ये कहने को की बस
एक तुम ही नहीं हो जिसने
मुकम्मल किया है मुहब्ब्त को
मैं भी हूँ जो सह रहा हूँ
अंजाम-ए-वफ़ा
खिलखिलाए हुऐ हो गयी मुद्दत
गुनगुनाये हुए भी ज़माना हुआ
मेरे कमरे में मेरी सांस पड़ी रहती है
ये जो शहर में घूमता है
ये जनाजा है मेरा
मेरी नज्मो में मेरे जज़्बात दबे रहते है
इन निगाहों में एक जान रोज डूबती है
ये परिंदों के जोड़े मुझे चिढ़ाते है
और मुझसे मिलने तो
मेरे अपने भी नहीं आते है
गर बदगुमाँ है तू
तेरी निबाह तेरी हालत पर
तो सुन ले
मैं भी कोई शहंशाह-ए-कायनात नहीं
किसी खूबसूरत जंगल में ज्यूँ
कोई ठूंठ खड़ा होता है
किताबों की दुकानों में
सड़े हैं ज्यूँ अदब के पन्ने
ठीक वैसे ही
एक रवायत सी निभाता हूँ
तुम्हारे बाद कोई नहीं मेरा
"मैं अकेला हूँ"
बस एक रस्म है जीने की
जो जिये जाता हूँ