शब्द
शब्द
पहले कहते थे हम और आप
फिर कहने लगे मुझे - तुझे
अब कहता है मेरेको - तेरेको ये ज़माना
भाषा की किमत आज पहुंच गई है करोड़ से बारह आना
ना बोलने का ढंग, ना तमीज का कोई ठिकाना
विराम चिंन्ह तो आप भूल ही जाना।
ऊपर से वाट्सएप्प ने मचाया ऐसा हाहाकार,
की राष्ट्रीय तो छोड़ो अंतर्राष्ट्रीय भाषा भी अब हुई बेकार।
लोग हसना भूलकर चुटकुलों पर कहते है 'लोल',
इसलिए तो बढ़ गया है डॉयबिटीज और कोलेस्ट्रॉल।
अजीब है आज के दौर की ये वाणी,
सुन्ने वाले को क्या, बोलने वाले को भी लगे काणी।
मध्य ऊँगली से बजती है चुटकियों की ताल,
उसी से आज आरम्भ होता है गलियों का भूचाल।
नासमझ है ये पीढ़ी,
फूँक रही है सम्मान जनक शब्दों की बीड़ी।