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“जिसने सर्वस्व निछावर कर, आजादी का नेतृत्व किया”

“जिसने सर्वस्व निछावर कर, आजादी का नेतृत्व किया”

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जिसने सर्वस्व निछावर कर, आजादी का नेतृत्व किया
अपने अमर पराक्रम से जिसने, हासिल अमरत्व किया
जिसमें साहस था अंग्रेजों को, मुँह पे जाकर धिक्कारा था
जिसने उस क्रूर हुक़ूमत को, आगे बढ़कर ललकारा था
जिसके बलिदानों के बल पर, भारत भर में उजियाला है
वीर भगत सिंह के जैसा, कोई हुआ न होने वाला है
हे वीर शिरोमणि भगत सिंह, हम तुमको शीश नवाते हैं
तेरे बलिदानों की गाथा, हम श्रृद्धा  सहित सुनाते हैं
जब अंग्रेजों के शासन में, भारत में अत्याचार हुऐ
उस दुष्ट हुक़ूमत की शय पर, जब जलियाँवाला बाग हुऐ
निर्दोषों की लाशें देख देख, वो देशभक्त रिसिया उठा
अपमान देखकर माता का, वो मातृभक्त अकुला उठा
जिन अंग्रेजों ने मेरी, भारत माता का किया अहित
उनका अस्तित्व मिटा दूँगा, वे तभी उठे संकल्प सहित
संकल्प किया जब लड़ने का, भीतर से भी उत्साह मिला
माता की सेवा में उनको, कुछ देशभक्तों का साथ मिला
लाला जी की हत्या की, जब अंग्रेज प्रशासन ने
इसका उत्तर देना होगा, की भीष्म प्रतिज्ञा तब मन में
उसने उस ब्रिटिश हुक़ूमत के, सीने पे चढ़कर वार किया
भरी दुपहरी भगत सिंह ने, सांडर्स को मार दिया
सांडर्स के मरने से, आ गया प्रसाशन सकते में
अब की बार गर्जना की उस बेटे ने कलकत्ते में
जब असेम्बली में बम फोड़ा तब साथ मिला बटुकेश्वर का
ख़ुद गिरफ़्तार  होकर बोले बदला लूँगा मैं हर सर का
भगत सिंह सब समझ रहे थे ये सिर्फ़ ऊपरी जामा है
हो चुका फैसला पहले ही, ये कोर्ट कचहरी ड्रामा है
सुखदेव राजगुरु भगत सिंह को देख के जज भी विस्मित था
दे दिया फैसला फाँसी का ये तो पहले से निश्चित था
वो देशभक्त थे देशभक्ति की रखे कैसे मर्याद नहीं
पहले जैसी दिनचर्या थी मन में कुछ हर्ष विषाद नहीं
चौबीस मार्च दिन हुआ नीयत जिस दिन फाँसी दी जानी थी
सर्वस्व निछावर करना था भारत को राह दिखानी थी
नुक्कड़ पर और चौराहों पर फाँसी की चर्चा होती थी
चर्चा का विषय एक ही था उसकी ही चर्चा होती थी
पूरे भारत में फ़ैल गयी फाँसी की ख़बर आग बनकर
नर नारी सारे कहते थे अन्याय है न्याय कहकर
एक अकेले भगत सिंह की ताकत को वो भाँप गऐ
जनता में ऐसा रोष देख दिल अंग्रेजों के काँप गऐ
वो समझ गऐ आसान नहीं है कार्य भगत की फाँसी का
फाँसी से एक रोज़ पहले फरमान आ गया फाँसी का
जेलर ने आकर बतलाया तुमको फाँसी दी जानी है
बिन देर किये चल पड़े भगत वीरों की यही निशानी है
जब भगत सिंह ने ये देखा सुखदेव राजगुरु आते हैं
आगे बढ़कर भगत सिंह दोनों को गले लगाते हैं
पूरा परिसर गूँज उठा भारत माँ के जयकारों से
हिल गया जेल का प्रांगण भी उन जोशीले नारों से
जाते ही उन अमर सपूतों ने कार्य एक क्या ख़ूब किया
भारत माता की जय बोली, फाँसी का फंदा चूम लिया
उस अंतिम पल में भी तीनों ने जयकारों को रुकने न दिया
तीनों ने अंत समय में भी मस्तक माँ का झुकने न दिया
उनकी जीवटता देख देख अधिकारी सारे चिंतित थे
मृत्यु से बेख़ौफ़ वे चेहरे देख के सारे विस्मित थे
बिन देर किये फिर गर्दन में फाँसी का फंदा डाल लिया
अगले ही पल तीनों ने माँ का घनघोर प्रचंड जयकार किया
मनहूस समय वो आ पहुँचा के जिस क्षण फाँसी होनी थी
भारत की खातिर वो होनी, होनी क्या थी, अनहोनी थी
फिर देख ईशारा जेलर का, जल्लाद ने हैंडल खींच दिया
तीनों ने अपने प्राणों से माता का आँचल सींच दिया
उनकी इस ह्त्या में शामिल हर एक बहुत शर्मिंदा था
निर्जीव हो गऐ थे तन पर पुरुषार्थ अभी तक ज़िंदा था
इस अमर कहानी में हमको अध्याय और लिखने होंगे
भगत सिंह से वीर और माँ की खातिर गढ़ने होंगे
ऐसे ही बेटों के ऊपर माता बलिहारी जाती हैं
ऐसे ही अमर सपूतों की आरती उतारी जाती है


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