परछाई
परछाई
दिल चाहे मेरा कभी-कभी,
पल्कों को यूहीं मूँद के,
घिरी रहूँ कुछ पल सपनों में।
यादे हों ताजा कभी-कभी,
फिर से जागे नीदों से,
भूली बिसरी यादों के जमाने।
सोचूँ मैं अभी-अभी,
कैसी धुँधली परछाई है ये,
आने से जिसके दूर,
हो चले साये अतीत के।
दिल खुशियों से,
खिला सोच-सोच के,
यह परछाई है,
भविष्य की खुशियों की,
जो मिटा रही है,
अतीत के दुखों को।