अरुणोदय
अरुणोदय
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इस नव विहान की नवल उषा
जिसके सुहाग से देव दिशा
सस्मित किरणों संग खेल रही
सो गई थकी रमणीय निशा
खग नभ का पटल बनाते हैं
शुभ गीत सलोने गाते हैं
वृतों के खिल नवीन पल्लव
आशारस भरते जाते हैं
कौमार्य भरी कलियाँ खिलतीं
पुलकित धरती रवि से मिलती
सुखमय प्रभात की नेह सुधा
आलोकपूर्ण लड़ियां सिलती
वसुधा पर चंचलता छाई
बन व्योमप्रिया वह इठलाई
दिनकर के प्रति कृतज्ञ होकर
अनुपम सुख पाकर भरमाई
हर्षित है सरिता और लता
कानन में सौरभ की समता
सच है अतुल्य जग उपवन में
इस अरुणोदय की सुंदरता।