जी करता है
जी करता है
रूठ जा फिर से तू,
आज फिर तुझे मनाने को जी करता है।
आज फिर से उन नशीली आँखों में,
डूब जाने को जी करता है।
माना कि चल दिए हम इश्क़ की राहों में बहुत दूर
आज फिर लौट जाने को जी करता है।
बड़ी तपन है ज़िन्दगी की राहों में,
फिर से तेरी ज़ुल्फ़ों के साये में सो जाने को जी करता है।
माना कि हो गयी है तू मेरी,
फिर भी आज तुझसे ही तुझको पाने को जी करता है।
बहुत कर ली समझदारी की बातें,
आज फिर से तेरे इश्क़ में बेहक जाने को जी करता है।
तू कहती रहे और मैं सुनता रहूँ,
बस तेरी बातों में फिर से खो जाने को जी करता है।
आ थाम ले मेरा हाथ, ले चल इस भीड़ से,
आज तुझ संग फिर से भाग जाने को जी करता है।
ऐसा नहीं कि थका हूँ इस ज़िंदगी से,
पर अब हर लम्हा तेरे ही संग बिताने को जी करता है।
शिकवा-शिकायत कौन करे इस ज़माने से,
अब तो सिर्फ इश्क़ की बातें करने को जी करता है।
बहुत सुना ये शोर-शराबा,
अब तो बस दिल की धड़कन सुनने को जी करता है।
थक चुकी है ज़ुबान भी झूठ बोलते,
अब तो बस आँखों से बातें करने को जी करता है।
लिखी बहुत सी शायरियाँ भले ही तेरी ख़ातिर,
फिर से तुझे अपनी ग़ज़ल बनाने को जी करता है।
मंज़िल की ख़्वाइश रही ना अब इस दिल में,
तेरा हाथ थाम उस हसीन राह पर बढ़ने को जी करता है।
होती है मौत अगर आख़री मंज़िल तो मिल ही जाएगी,
बस, उससे पहले तुझ संग हर लम्हा जीने को जी करता है।