जब हम बच्चे थे
जब हम बच्चे थे
ये बात उन दिनों की है, जब हम बच्चे थे
झूठ बोलते थे बेधड़क ,पर मन के सच्चे थे।
घर पहुंचते ही पहले गृहकार्य करते थे
उस निप वाले पेन में चिलपार्क भरते थे।
स्याही से हाथ, शर्ट सब नीले रहते थे
वेरी गुड पाकर के चेहरे खिले रहते थे।
कितने अच्छे थे वो दिन, वो कितने अच्छे थे
ये बात उन दिनों की है ,जब हम बच्चे थे।
चार बजते ही उस गली में स्टंप लगाते थे
खाना खाके प्लेयर सीधा पिच में दिखते थे।
रन आउट पर फिर वो क्या रिप्ले होता था
क्रिकेट छोड़ फिर बहसबाजी का प्ले होता था।
खिताब बहसबाजी का उसको मिलता था
जिसकी बैटिंग पहले वही रंगबाजी पेलता था।
वो खिसियाहट, बहस ,लड़ाई, सब कितने अच्छे थे
ये बात उन दिनों की है जब हम बच्चे थे।
वो स्टम्प पूछते है हमसे, क्या वो दिन आयेंगे
वो बेट पूछता है हमसे, अब हम कब पकड़े जायेंगे।
मैंने कहा, हम बड़े हुए,अब ऐ खेल नहीं खेला जाता
दोस्त खेलते हैं शतरंज, अब यह क्रिकेट नहीं उनको भाता।।