लहरों की व्याकुलता
लहरों की व्याकुलता
क्यों तट पर आकर लहरों
तुम अपना सर टकराती हो ?
क्या अपने साजन से मिलने
तुम सागर तट तक आती हो ?
क्यों विचलित इतना रहती हो ?
कभी इधर और कभी उधर,
उद्वेलित होकर फिरती हो।
तट पर सागर के कोई आये,
तुम चरण चूमने आती हो।
चूम–चूम चरणों को सबके,
अपने पिया का पता पूछती हो।
कितना प्रेम छुपा अंतस में,
सागर को यह पता नहीं।
इसीलिए लहरें बन कर तुम,
तट पर आ टकराती हो।