इश्क
इश्क
इक वजह तो बने फिर मुलाकात की,
बच गई जो अधूरी विरह बात की।
है कसक सा उठा दिलनशी शाम से-
रोक कैसे सकूँ बाढ़ जज्बात की।।
इश्क को इक तलब है लगी आपकी,
इस ज़हन में कली है खिली आपकी।
मैं बसी गर नज़र में तुम्हारे सनम--
रास्ते दिल के मेरे गली आपकी।।