Become a PUBLISHED AUTHOR at just 1999/- INR!! Limited Period Offer
Become a PUBLISHED AUTHOR at just 1999/- INR!! Limited Period Offer

शब्द या खेल

शब्द या खेल

1 min
483



शब्दों से दिल लगा

लिया मैंने,

मोहब्बत भी की,

नफ़रत भी की,

कभी कभी मेरे

दिल को ही दुखा

दिया मैंने,


कभी बनकर मरहम ,

मेरे दर्द को सुलझाया 

कभी बनाकर मेरे अपनों को

निशाना, दगा दिया मैंने,


बेशक ये मैं ना थी,

ना मेरा दिल था,

इन शब्दों ने ऐसा

फँसा दिया मुझे,


कभी एक पल में मुझे

अपनों से जुदा कर जाते है,

कभी अजनबी जुबान

बनकर महक बिखेर जाते है,


कहते है ख़ामोश

लबों पर शब्दों की

आवाज़ नहीं आती ,

पर ख़ामोशी को

बनाकर तीर,

निशाना बनाते है ये।


दूरियों की दीवार,

कभी क़रीब लाते है ये।

कभी मुस्कुराहट बनकर

बिखर जाते है ये।


हाँ शब्दों ने ग़ुलाम

बना लिया मुझे,

जिसके बिना एक

पल नहीं कटता,

बातें किये बिना

मन नहीं भरता ,

लगा कर जुबान

पर ताला,

दूर कर दिया मुझे।


हाँ शब्दों ने बेरहम

बना दिया मुझे।


   


Rate this content
Log in