जीवन मेरा
जीवन मेरा
पति के बटुए सा है
हो गया है जीवन मेरा
कभी लगता अपना सा
कभी नितान्त पराया सा
कभी बाँटता छोटी छोटी खुशियाँ
दे देता हक जीने का
कभी झपटता सब अधिकार
कभी स्वामिनी मैं कहलाती
कभी निर्वासित सीता सी
कभी छिटकता दूर मुझ से
कभी खोजती हरपल जैसे
कभी उमंग भरा सा लगता
कभी खाली लिफाफे सा
कभी खनकता सिक्कों सा
कभी भरा भरा सा लगता
जीवन मेरा पति के बटुए जैसा
खोने का डर बना ही रहता।