तुम केवल श्रद्धा नहीं हो
तुम केवल श्रद्धा नहीं हो
तुम अपने आँसुओं को
व्यर्थ न जाने दो।
ये मानो तुम्हारी
अनमोल धरोहर हैं।
तुम्हें लड़ना है
अपनी रक्षा के लिऐ
अपने अधिकारों के लिऐ
लड़ना है तुम्हें
मरते दम तक
मंज़िल की तलाश तक
लहू की आखिरी बूँद तक
जीवन की डगर पर
चलना है बहुत आगे तक
तुम्हें कानों को
विजय ध्वनि सुननी है।
फिर तुम आत्मदाह क्यों करो?
फाँसी के फन्दे से क्यों झूलो?
रेल की पटरी पर
सोना नहीं है तुम्हें
इस धरती पर
अपना लहू बोना नहीं है तुम्हें
आत्म विश्वास खोना नहीं है तुम्हें
तुम तो आधार हो
इस सृष्टि का, इस संसार का
तुम न रहोगी तो यह भवन
चरमरा कर गिर पड़ेगा
तुम बीज हो,
जब तुम न रहोगी
यह धरती बंजर हो जाऐगी।
तुम माँ हो
अपने आँचल में छुपाकर
सृष्टि की सन्तानों को
दूध पिलाती हो।
तुम पत्नी हो
पति के सुख-दुःख की
बैसाखी बनती हो।
तुम बहन हो
जिसकी राखी के धागे
रणभूमि में
भाई की ढाल बन जाते हैं।
तुम बेटो हो, बहू हो
बूढ़ों की लाठी बन जाती हो
सागर मन्थन से तुम्हें
अमृत भी निकालना है
और विष भी
किसी को अमृत पिलाना है
तो किसी को विष का प्याला
क्योंकि यहाँ देवता भी है
और राक्षस भी
दोनों के बीच रह कर चलाना है
तुम्हें अपना विजय रथ
तुम सीता हो तो दुर्गा भी हो
तुम सती सावित्री हो
तो रणचण्डी भी हो
तुम शीतल पवन हो
तो काली आँधी भी हो।
तुम अबला नहीं हो
तुम केवल श्रद्धा नहीं हो।