लौह रुपिणी
लौह रुपिणी
भेजकर सेना में बेटे को
माँ का हृदय था गर्वित,
देश के नाम अपना सपूत
कर दिया उसने अर्पित।
कहती सबको गर्व से
खुशी के आंसू भर आँखों में,
देश प्रेम की भावना झलकती
उसकी प्रत्येक बातों में।
जन्म दिया मैंने बेटे को
देश पर मर मिटने के लिए,
वो मां किस काम की है
जो केवल जिए अपने लिए।
देश सुरक्षित है तो हम हैं
हमारी नहीं है कोई हस्ती,
सेना ना करे सुरक्षा देश की तो
रहेगा ना कोई शहर, ना कोई बस्ती।
दी शिक्षा माँ ने बेटे को
देश पर तुम मर मिटना,
खाना गोली सीने पर,फिर
भी पीछे कभी ना हटना।
तुम भारत के हो वीर सपूत
दुश्मनों को बतला देना,
एक को मारे वह तो तुम
दस दस को मार गिराना।
पार्थिव शरीर जब आया था
तिरंगे में लिपटकर आँगन में,
ना चेहरे पर शिकन थी माँँ की
ना आँसू थे उसके नैनों में।
पाँच साल के बेटे ने, पिता के
पार्थिव शरीर को किया सैलूट,
इस दर्दनाक दृश्य को देख
गाँव वाले दुख से गए थे टूट।
माँ ने दिया कंधा बेटे को
आश्चर्यचकित सब देखते रहे,
लौह रुपिणी, शक्ति रूपिणी माँँ के
दोनों नैन गर्व से चमकते रहे।
दी उसने दुश्मनों को
निशब्द होकर चेतावनी,
कमजोर नहीं है माँँओं के कंधे
सुन लो तुम नीच, अभिमानी।
मिटा देंगे तुम्हारी हस्ती
हम में हैं इतनी शक्ति,
हम पर बुरी नजर डालने वालों
प्रत्येक हृदय में है देश भक्ति।
ऐसे वीर सपूतों के, धीर माओं को
हृदय से मेरा शत शत नमन,
इनके दम से ही सुरक्षित है
भारत भूमि की शांति- अमन।
एक सीख दे गए युवा पीढ़ी को
अडिग रहो अपना सीना तान,
कट जाए शीष देश के नाम
पर झुके ना हमारी आन व शान।
अंकित रहेगी हृदय में सबके
उनकी यह वीरता भरी गाथा,
इतिहास भी करेगा नमन सदा
झुका कर सम्मान में अपना माथा।