चारों धाम
चारों धाम
बचपन की यादों को कभी भुलाया नहीं जाता।
माँ बाप को कभी रुलाया नहीं जाता।
पापा की उंगली पकड़ कर हमने चलना सीखा।
उनकी बातों से सफलता की राहों पर बढ़ना सीखा।
जब उन्हें बुढ़ापा में चलने के लिए सहारा देने की बारी आई।
तो हमने उनको एक लाठी पकड़ाई।
जब माँ को खिलाने की बारी आई।
तो हमने खिलाने के लिए दाई बुलाई।
माता-पिता ने हमें जीवन का हर सुख दिया।
अकेलापन महसूस कभी ना होने दिया।
हमने उनके जरूरत की हर चीज़ दी।
पर उन्हें बेटे का एहसास होने ना दी।
उनकी हर रोग की दवा हमने रखी।
पर उनके अकेलेपन की दवा कभी ना रखी।
माँ-बाप के चरणों में बसते हैं चारों धाम,
करो माँ को प्रणाम, करो पिता को प्रणाम।