परेशान बारिश
परेशान बारिश
परेशान बहुत है
यह बारिश का पानी
हो गई व्यर्थ, अब
नानी की कहानी।
कागज की नाव
न चलती अब पानी में,
न छत पर छम-छम कर
भीगते बच्चों की टोली,
बारिश में नहाना, खेलना-कूदना
हुड़दंग मचाना, अब
बातें ये सब हो गई पुरानी।
हो गई व्यर्थ, अब
नानी की कहानी।
न घटाओं को निहारती
बोझिल सी आँखें
न करती इंतजार सावन का
कोमल सुकुमारियों की टोली
न साथी न संगी
न खेल न तमाशा, अब
सब कुछ है नकली
सब कुछ बेमानी
हो गई व्यर्थ अब
नानी की कहानी।
न बदलों संग उड़ते
अबोध शिशुओं का झुंड,
न इंद्रधनुषी रंगों में रंगें
बच्चों संग बुजुर्गों का साथ,
अब न होती सुनहरी सुबह
न होती खिलखिलाती शाम।
बेचैनी की चादर लपेटे, अब
हर किसी की कुछ न कुछ परेशानी।
हो गई व्यर्थ, अब
नानी की कहानी।
न अमवा की डाली पर
पैंग बढ़ाती किशोरियाँ,
न कदंब की छाया में
हिंडोले का गीत संगीत,
न गलबहियां डाले
झूला झूलती टोलियां,
अब सब कुछ नेट पर ढूंढती
यह अंगुलियाँ दीवानी।
हो गई व्यर्थ, अब
नानी की कहानी।