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मेरे अल्फाज़ मुझसे नाराज हो जाते है

मेरे अल्फाज़ मुझसे नाराज हो जाते है

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मेरे लफ्ज़ ही मेरे खिलाफ हो जाते हैं,
जो करूँ शिकवा कभी आपसे
मेरे अलफ़ाज़ मुझसे नाराज़ हो जाते हैं,
मेरे दिल पर अब क्या कहें
हुकूमत है बस आपकी,
जिस दिन  आपको ना देखें
ये आँखें तो धूमिल सा
इक चिराग हो जातें हैं,
ये तेरे जलवों का ही असर है
कि हम खुद से  ही बेखबर हैं 
पता जो पूछूं कभी इस दिल से
अपना वो आपके दिल का रास्ता बताते हैं,
मेरे इस दिल पर अब मेरा ही
जोर नहीं चलता,
जाना जो चाहूँ कहीं और
कदम बस आपके दर पर ही मुड़ जाते हैं,
मोहब्बत की भी ये हद है
इसे अब और क्या कहिये
मेरी हर शाम तेरी यादों के के नाम। 


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