जज़्बात
जज़्बात
कुछ अपनों को अपना समझकर समझाना छोड़ दिया,
अहमियत[1] ना मिलने पर हमने हक जताना छोड़ दिया।
गल्तियां सुधारने के लिए उसे कबूलना[2] बहुत जरूरी है,
खुद को सूरज बताने वालों को चिराग दिखाना छोड़ दिया।
जब मशवरा नहीं मानते तो हमें शर्मिंदगी महसूस होती,
इसलिए अपनी ही नज़रों में खुद को गिराना छोड़ दिया।
सुबह शाम की बहस से दिल बेबस होकर मायूस लगता,
प्यार से सजाए घर को मैदान-ए-जंग बनाना छोड़ दिया।
ए खुदा ये कैसा ज़हर भर गया तेरे बनाए रिश्तों में कि,
अपनों ने अपनों के दिलों को भी पसंद आना छोड़ दिया।
कुछ ऐसा लिख अशीश कि इक बार दिल से कह दें वो,
कि मैंने अब से अम्मी अबू का दिल दुखाना छोड़ दिया।
[1] importance
[2] accept