मैं मुस्लिम और वो हिन्दू
मैं मुस्लिम और वो हिन्दू
क्या कहूँ, कैसी अजीब करामात थी,
मैं मुस्लिम और हिन्दू उसकी जात थी।
पहले तो वक्त ने अपना कहर बरसाया,
प्यार का सौगात देकर हमें मिलाया।
मुझे अक्सर उसका इंतजार होता है,
वो आता है मिलने जब ये जग सोता है।
उसने मुझे प्यार का एहसास कराया,
पर दुनिया ने जातिवाद का भेद बताया।
दुनिया की रीति हमें समझ नहीं आई है,
और इस रीति ने बनाई हमारी तनहाई हैं।
मजहब ने मेरे महबूब का कत्ल किया,
आज तक मैंने विष का हर घूंट पीया।
दुनिया की यह पहेली बहुत ही पुरानी है,
हिन्दू-मुस्लिम के विरह की कई कहानी है।
वो मुझे जन्नत से हर रोज पुकारते है,
मेरी हर नमाज में मुझसे मिलने आते हैं।
खाकर जहर मौत की गोद में सोना है,
अब मुझे किस बात का रोना है।
दफना दो मुझे ये आखिरी मन्नत है,
क्योंकि मरने के बाद मुसलमान-ए -जन्नत है।
मिलूंगी उनसे तो जन्नत में कव्वाली होगी,
वहाँ हमारी ईद और उनकी दिवाली होगी।