दिव्यांग लोगों पर आधारित कविता
दिव्यांग लोगों पर आधारित कविता
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नई पहल नई मुकाम हासिल करने चली हूँ
खुद के सपनों को साकार करने चली हूँ
तय हौसले मजबूत इरादों से पढ़ने चली हूँ
बेटी होकर माँ बाप के सपने पूरा करने चली हूँ
मंजिल दूर पर इच्छाओं से पुर होकर चली हूँ
ठानकऱ कदम लक्ष्य को बांधने को खुद चली हूँ
नही हूँ निराशा अपने इस अप्रिय इच्छा तन पर
बस निराशाजनक बैठे लोगोँ को बताने चली हूँ
शिक्षा की सूरज की बाती लोगोँ को समझाने चली हूँ
हर घर - घर में शिक्षा की अलख खुद जगाने चली हूँ