कलम
कलम
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कलम चलती रही
निरंतर बिना रुके
सृजन करती रही
कभी लिखे इसने
गीत खुशियों के
लिखी कभी
व्यथा सबकी
भावों को भाषा दी
कविता की
नई परिभाषा दी
पन्नों को भरती रही
पीड़ा मन की हरती रही
हाल जो न कह पाए
किसी से ये अधर
उस मौन को कर दिया
इसने मुखर
शब्दों से कर ली
जब इसने प्रीत
हो गई तब समझो
फिर कलम की जीत
अंजू मोटवानी