अग्निपथ,अग्निपथ,अग्निपथ!!!!!
अग्निपथ,अग्निपथ,अग्निपथ!!!!!
पथ पे जब हो अंगारे बिछे
तू भी मुस्कुरा और मदमस्त होकर
कदम बढ़ा और हुंकार भर
अग्निपथ,अग्निपथ ,अग्निपथ
क्यूँकि तुझमें भी कहीं आग है
ऐ मुसाफिर
यूँ मायूस न बैठ
लड़खड़ाते क़दमों से ही तो
चलना सीखा था तू
कस कमर , उठा कमान
ये समय की पुकार है
अपने अंदर की अग्नि को पुनः प्रज्वलित कर
अग्निपथ,अग्निपथ ,अग्निपथ
क्यूँकि तुझमे भी कहीं आग है
मिटा आसुरी - विकारों को
अपना ले देव्यै सदगुनो को
लहू से लिख दे
तू भी कोई अमर गाथा
जीवन रूपी समुन्दर में
टूट पर बन एक ज्वालामुखी
मठ दे चिर सिंधु का
और निकल ले अमृत
अग्निपथ,अग्निपथ ,अग्निपथ
क्यूँकि तुझमे भी कहीं आग है
कुछ जी ले
कुछ हँस ले
कभी कलम चला ले
और वक़्त की फरियाद पे
अपनी तलवार को लहू चखा दे
अग्निपथ,अग्निपथ,अग्निपथ
क्यूँकि तुझमे भी कहीं आग है
घुटने टेक दे राहों के रोड़े
सफलता की सीढ़ियों पे चलता चल
और विश्वास मान
एक दिन मंजिल चूमेगी ललाट
और ख़ुद ज़िन्दगी लगाऐगी तिलक
क्यूँकि तुझमे भी कहीं आग है
अग्निपथ,अग्निपथ,अग्निपथ!!!!!