राज़ राज़ ही रह जाये तो अच्छा
राज़ राज़ ही रह जाये तो अच्छा
1 min
241
कुछ राज़ राज़ ही रह जाते तो अच्छा होता
वो हम पर मेहरबानियां लुटाते रहे
और हम उनको कसूर-वर ठहराते रहे
दोष किसका था नहीं जानते हम
कभी उनको तो कभी खुद को गुनहगार ठहराते रहे
कोशिश तो की हमने हर फासला मिटने की
पर तकदीर को शायद कुछ और ही मंजूर था
ना मिलते हम तो अच्छा होता न दर्द उनको और
ना ही हमको मिले होते
राज़ राज़ ही रह जाये तो अच्छा