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Saket Shubham

Drama

4.9  

Saket Shubham

Drama

प्यार की कालिख़

प्यार की कालिख़

1 min
211


अरमानों में आग लगी

रिश्तों का उड़ा धुँआ

मरते जलते यादों पर

थमती धड़कन

बहती फिर सूखती

अश्कों का समा


झूठ,सच,यारी

ख़ुलूस, दोस्ती, वफ़ा

इन सब बेकार बातों का

अब मोल कहाँ


न तू रहा न मैं रहा

अब अना के सिवा

कुछ बचा कहाँ

मर जाऊँ तो जला देना

इस बेजान ठंडे गोश्त को

राख़ बचाना और कालिख़

लगाना उसके हाथों पर

और ये कहना कि जाओ अब

तेरा यार प्यार अब बचा कहाँ


अरमानों में जो आग लगी

रिश्तों का जो उड़ा धुआँ

तेरा प्यार यार अब न रहा

ले थाम ले राख को हाथों में

यहाँ यार कहाँ वो प्यार कहाँ



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