मेरा मन
मेरा मन
कभी अपनी बनायी दुनिया में
सिमट जाता है
कभी पूरी दुनिया को
अपने में समेट लेता
है मेरा मन!
चोट खाकर भी
मुस्कुराते हुए कैसे
पास मेरे चले आता
है मेरा मन!
जब कभी डर लगता है
उदास सी होती हूँ
खुद पर यकीन दिलाता
है मेरा मन!
कभी अपनी बनायी दुनिया में
सिमट जाता है
कभी पूरी दुनिया को
अपने में समेट लेता
है मेरा मन!
चोट खाकर भी
मुस्कुराते हुए कैसे
पास मेरे चले आता
है मेरा मन!
जब कभी डर लगता है
उदास सी होती हूँ
खुद पर यकीन दिलाता
है मेरा मन!