सभी इल्ज़ाम शीशे पर, ये जग कब तक लगायेगा
सभी इल्ज़ाम शीशे पर, ये जग कब तक लगायेगा
सभी इल्ज़ाम शीशे पर, ये जग कब तक लगाएगा,
भला, नाकामियों को वो यहाँ कैसे छुपाएगा।
तुम्हारा है, तुम्ही रख लो उजाला और सूरज भी,
हमारा यार जुगनू है हमें रस्ता दिखाएगा।
चिरागों के लिए मैंने हवा से दुश्मनी कर ली,
मुझे क्या था पता, वो तो मेरा ही घर जलाएगा।
सही मंज़िल हकीकत में उसे हासिल नहीं होगी,
कभी जो साजिशों को कर किसी का दिल दुखायएगा।
बिना मतलब उफनता है मियाँ खारा समंदर भी,
किसी प्यासे शज़र की आग दरिया ही बुझाएगा।
जिसे कंधे बिठाकर आज दरिया पार करवाया,
यक़ीनन पीठ पर वो ही कभी खंज़र चलाएगा।
हमारे हौंसले का इस कदर जो खून कर बैठा,
मियाँ क्या खाक रिश्ता दोस्ती का वो निभायेगा।
यक़ीनन भूलना उसको नहीं आसान होगा फिर,
मेरी महफ़िल में आकर जो कभी दो पल बिताएगा।