होली है...
होली है...
न ख़ुशी कोई ना उल्लास, मायूस से चेहरे हैं बस
न गुलाल में वो रंग बचा, ना गुजिया में कोई रस !
दिवाली पर प्रदुषण और होली पे पानी की दुहाई
ऐसी ज्ञान की गंगा के आगे, इंसान बेचारा बेबस !
मिलना-जुलना, ना भाईचारा, ना ही कोई लगाव
सोशल मीडिया पर व्यस्त हैं, बस छिड़ी है बहस !
त्यौहार कोई सा भी हो, जोश का होना लाज़िम है
सहमे हुए लोग हैं, डराता हुआ कोरोना वायरस !
कब तक तुम यूँ ही डरोगे, आख़िर जियोगे कब
वक़्त निकल रहा हाथों से, गुज़रते जाते हैं बरस !