Unlock solutions to your love life challenges, from choosing the right partner to navigating deception and loneliness, with the book "Lust Love & Liberation ". Click here to get your copy!
Unlock solutions to your love life challenges, from choosing the right partner to navigating deception and loneliness, with the book "Lust Love & Liberation ". Click here to get your copy!

मैं जी क्यों रहा हूँ?

मैं जी क्यों रहा हूँ?

2 mins
13.8K


क्यों जी रहे हो तुम,कभी सोचा है?
क्यों रोज़ सुबह बिना सवाल उठ जाते हो?
क्यों लगातार सांसें लेते रहते हो?
आख़िर क्यों जीते चले जाते हो?
अफ़सोस, मैंने सोचा है।

मैंने सोचा है मेरी लगातार चलती साँसों के बारे में
हर सुबह खुद-ब-खुद खुलती आँखों के बारे में
मैंने देखा है रातों को सुबह की रौशनी में खोते हुए
रोज़ सूरज को आसमान चढ़कर, फिर ढलते हुए

मगर जो होता है,वो क्यों होते चले जाता है?
रात को सोकर सुबह क्यों जागना होता है?
फिर इस शरीर को नहलाओ, धुलाओ, कुछ खिलाओ
दिल मिले ना मिले, लोगों से रोज़ बातें मिलाओ
ज़िंदगियाँ ट्रेन की तरह लगातार चलती रहती हैं
मुसाफ़िर की रातें पटरी पर कटती रहती हैं

शायद किसी ने चाबी भरी हुई है और मैं वो ताली बजाने वाला बंदर हूँ
मैं ताली बजाते जा रहा हूँ और मुझे ये भी नहीं पता कि क्यूँ बजा रहा हूँ
ख़ैर एक न एक दिन चाबी पूरी हो जाएगी
मैं भी रुकूँगा और ताली भी रुक जाएगी
लेकिन चाबी कब पूरी होगी ये नहीं पता
सच पूछिए, तो मैं जानना भी नहीं चाहता
मुझे तो बस चाबी भरने वाले से मिलना है
जिंदगी की ट्रेन के ड्राइवर को देखना है
उससे पूछना है कि भाई क्या मुझसे पूछकर तुमने मुझमें चाबी भरी थी?
जिंदगी के लफड़े में फँसाने से पहले क्या मेरी इजाज़त ली थी?

अगर हाँ तो मुझे वो समझौता दिखाओ,जिसमें मैंने मेरी आज़ादी का सौदा किया था
कहीं तो दस्तखत किए होंगे न मैंने?
मुझे वो काग़ज़ दिखाओ, जहाँ मैंने मेरी आज़ादी का सौदा किया था

मज़े की बात ये है कि इन सवालों का जवाब है ही नहीं
मैं जानता हूँ, मैं मशीन का पुर्ज़ा हूँ, मैं मशीन नहीं
मुझे अच्छे से पता है कि न कोई सौदा है न कोई समझौता है
मैं जानता हूँ कि किसी को नहीं पता, जो होता है वो क्यों होता है

बस जिए जाता हूँ मैं हर दिन एक अजीब सी कैफ़ियत में
शायद ख़ामोशी से सांसे लेते रहना ही है मेरी हैसियत में
मैं सांसे लेता रहता हूँ जिंदगी चलाने के लिए
हर रात सोता हूँ, हर सुबह फिर जागने के लिए
आँखे खुलते ही मशीन का हर पुर्ज़ा काम पर लग जाता है
चाबियाँ लगती जाती हैं हर ताला खुल जाता है
बस उस एक कमरे का ताला नहीं खुलता, जिसमें वो राज़ छुपा है
बस उस एक रास्ते पर उजाला नहीं होता, जिसमें वो अंधेरी गुफ़ा है
बस चले जाता हूँ इस सवाल को ज़ुबान पर लिए
मैं सांसे क्यों ले रहा हूँ, जी रहा हूँ किस लिए???


Rate this content
Log in