आप होते तो समेटते
आप होते तो समेटते
बैठी हूँ
मायूसी में,
घर के एक
कोने में,
सदिया लग
जाती हैं
एक सपना
सजोने
में,
क्षण भर भी
नहीं लगता,
कुछ खोने में,
सब बिखरा
हुआ
पड़ा हैं,
वो खत जो
आपको लिखा था,
आँखों के मेरे
आँसू पोंछते,
मुझको भी संभालते,
ऐसे ना बिखरा
पड़ा होता,
एक -एक टुकड़ा
हम भी ना रोते
आप होते तो समेटते।