जीवन ऊर्जा तो एक ही है
जीवन ऊर्जा तो एक ही है
जीवन ऊर्जा तो एक ही है,
ये तुम पे कैसे खर्च करो,
या जीवन में अर्थ भरो
या यूँ ही इसको व्यर्थ करो।
या मन में रखो हीनभाव
और इच्छित औरों पे प्रभाव,
भागो बंगला गाड़ी पीछे,
कभी ओहदा कुर्सी के नीचे,
जीवन को खाली व्यर्थ करो,
जीवन ऊर्जा तो एक ही है,
ये तुम पे कैसे खर्च करो।
या पोषित हृदय में संताप,
या जीवन ग्रसित वेग ताप,
कभी ईर्ष्या, पीड़ा हो जलन,
कभी घृणा की धधके अगन,
अभिमान, क्रोध अनर्थ तजो,
जीवन ऊर्जा तो एक ही है,
ये तुम पे कैसे खर्च करो।
या लिखो गीत कोई कविता,
निज हृदय प्रवाहित हो सरिता,
कोई चित्र रचो, संगीत रचो,
कि कोई नृत्य कोई प्रीत रचो,
तुम ही संबल समर्थ अहो,
जीवन ऊर्जा तो एक ही है,
ये तुम पे कैसे खर्च करो।
जीवन में होती रहे आय,
हो जीवन का ना ये पर्याय,
कि तुममें बसती है सृष्टि,
हो सकती ईश्वर की भक्ति,
तुम कोई तो निष्कर्ष धरो,
जीवन ऊर्जा तो एक ही है,
ये तुम पे कैसे खर्च करो।
कभी ईश्वर यहाँ न आते हैं,
कोई मार्ग बता न जाते हैं,
तुमको ही करने है उपाय,
इस जीवन का क्या है पर्याय,
तुम ही निज में कुछ अर्थ भरो,
जीवन ऊर्जा तो एक ही है,
ये तुम पे कैसे खर्च करो।।