गज़ल
गज़ल
समन्दर की रवानी और सहरा नाप लेता हूँ
मैं नक्शे से लिपट के सारी दुनिया नाप लेता हूँ
जो दुनिया को बदल देने की अक्सर बात करता है
मैं हक़ की बात कह के उसका सीना नाप लेता हूँ
हमारी दोस्ती में वक़्त कितना है समझने को
मैं अपने पाँव और बाबा का जूता नाप लेता हूँ