मैंने तो सोचा था भूला दिया
मैंने तो सोचा था भूला दिया
उठा जो दिल मे दर्द बहुत
तो कलम भी आज उठ ही गई.
हिम्मत कितनी चाहिये होती है
किसी को भुलाने की
इसका एहसास मुझे आज फिर हो गया
मैने तो सोचा था की भूला दिया उस अजनबी को
पर कहाँ, आज उसके नाम ने फिर से मुझे रुला दिया
फिर वही दर्द, वही तड़प, वही एहसास
मालुम होता है - आज फिर से यादो ने उसकी मुझे हरा दिया
टूट गई आज फिर मै
बांध कर जो रखा था सब्र मैने इतने दिनो से
आज फिर उन ज़ख्मो ने मुझे झुका दिया
आखिर भूल भी जाती कैसे उसको
जिसने इतने गेहरे ज़ख्म देकर मुझे पूरी तरह भूला दिया
और भला वो याद भी क्यू रखे मुझे
मैने कहाँ - कब - कौनसा ज़ख्म उसे वापिस लौटा दिया
मेरे हिस्से में तो अफसोस-ज़ख्म-याद-बेचैनी सब रह गए..
उसके पास तो सूकुन मोहब्बत के अलावा बस और क्या रह गया..