इंद्रधनुष
इंद्रधनुष
सावन फीका सा हो गया है
अट्टालिकाओं से बने
इस शहर मे
अब इंद्रधनुष
नहीं दिखता।
अब सोचती हूँ
रच लूँ
एक नया
मेरा अपना इंद्रधनुष।
थोड़े रंग तुम दे दो
थोड़े रंग मैं दे दूँ
मन के आसमां मे
जीवन के
अनुभवों का रंग
बिखेर दें।
सजा दें सुघड़ता से
तुम्हारी शोखियों का
हरा रंग
मेरी खामोशियों का
पीला रंग।
तुम्हें याद करके
जो पसरा था
मेरे होठों पर
वो गुलाबी रंग
सब डाल देंगे
अपने इंद्रधनुष में
एक-एक करके।
तुम्हें याद है वो झील?
जिसके किनारे
राह तकती थी
तुम्हारा
घंटों अकेली बैठकर
उस झील की
गहराइयों से झांकता
झिलमिलाता
नीला रंग।
तीसरे पहर तक
जो करवटों मे काटी
उस रात की सिलवटों का
स्याही रंग।
और रतजगी से
सूजी आँखों में
पड़ी लकीरों का
सूर्ख लाल रंग।
क्या इतने रंग
काफ़ी नहीं हैं?
फिर और भी रंग
जो जिंदगी देगी
सौगात मे हमें
सब सजाते जाएँगे
एक-एक करके।
चमकेगा निखरेगा
नित दिन
सात रंगों से भी
ज्यादा रंगों वाला
हमारा अपना इंद्रधनुष!