चिड़ा चिड़ी
चिड़ा चिड़ी
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एक जंगल में रहते थे
एक चिड़ा और और एक चिड़ी
चिड़ी एक दिन गुस्से में
चिड़े पर खूब बिगड़ पड़ी।
बोली बैठे बैठे खाते हो
चादर तान के सोते हो
न घर का कोई काम धाम
न बच्चों की फ़िक्र पड़ी।
मैं घर बाहर दोनों देखूं
सुबह शाम तक काम करूँ
अब न मैं कुछ भी करूँ
बात पे अपने रही अड़ी।
सोच में फिर पड़ा चिड़ा
बात में इसके दम तो है
दिन भर खटती है बेचारी
आज इसी से बरस पड़ी।
बोला माफ़ कर दे चिड़ी
अकल पे मेरे पाथ पड़ी
अब से मैं भी काम करूँगा
बस तू रहना साथ खड़ी।