आ जायेगी एक रोज
आ जायेगी एक रोज
हवा के झोंके सी खामोशी से
एक रोज आ जायेगी तू
ना ही कोई आवाज़ होगी तेरी
ना ही कोई खुश्बू तेरी।
कि हम समझ जाए तू
आस पास है
ऐ मौत तेरे आने का ना कोई
वक्त है ना ही पता किसी को।
चुपके से तू आ जाती है कभी
कभी कोई शोर साथ ले आती है
कभी तूफान बनकर आती है
और उखाड़ कर सब को ले जाती है।
कोई नहीं जान पाता तेरी तारीख
कहते हैं जो खुद को पंडित
वो भी हो जाते हैं खामोश
ऐ मौत मुझे तुझसे प्यार है।
तू मुझे साथ अपने ले जाएगी
डर नहीं लगता मुझे तुझसे
क्योंकि जानती हूँ मैं तुझे अच्छे से
आखरी मंजिल मेरी तू है ऐ मौत।
तुझसे क्यों फिर घबराना
एक रोज तो जाना होगा फिर
क्यों ना खुशी खुशी इसे गले लगा ले।।