ग़ज़ल
ग़ज़ल
1 min
6.7K
सुनो! हमारी साँसे ग़ज़ल कह रही है
तुम्हारी लबों पर जमी एक चॉकलेट
मेरे गाल से आके कुछ कह रही है
ज़माना जिन्हें लोथड़े कह रहा है
मैं चूमता हूँ तो दुआ मिल रही है
मुझे चाहतें थी जहाँ भीगने की
उसी झील में फिर पनाह मिल रही है
पीपल के पत्ते सा नाज़ुक है हिस्सा
मेरी उंगलिया भी वहीँ ढल रही है
मेरे जिस्म की कोई पत्थर सी मिट्टी
तेरे नर्म चूल्हे में गज़ब जल रही है
मेरी रूह ने फिर कसम तोड़ दी है
किसमत से नीयत की जंग चल रही है