दोस्त, क्यों बार बार
दोस्त, क्यों बार बार
दोस्त, क्यों बार बार
मुझे आज़माते हो
तेरी तरह मैं भी काँटों पे चलता हूँ
तेरी तरह मैं भी सूरज को तकता हूँ
दोस्त, क्यों बार बार
मेरी तकदीर आज़माते हो
मैं भी लुटा वहीं, जहाँ तेरा काफिला लुटा
मैं भी मिटा वहीं, जहाँ तेरा सिर काट था
दोस्त, क्यों बार बार
मेरा ईमान आज़माते हो
कलियों का चटख रंग आँखों को लुभाता है
इनके खिलने पर मेरा दिल भी धड़कता है
दोस्त, क्यों बार बार
मेरे जज़्बात आज़माते हो